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काश मैं भी बाबा होता

हर किसी की इच्छा होती है कि वो जिंदगी में कुछ बने, कुछ अच्छा करे। हर छात्र कुछ ना कुछ सपने देखता ही है। कोई डाक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, किसी को मैनेजर बनना है तो किसी को आर्किटेक्ट, किसी को राजनीति में जाना है तो किसी को विदेश जाना है। सूची बहुत लंबी है। और अगर कोई ऎसे सपने देखने की मेहनत नहीं करता है तो उनकी तरफ से यह मेहनत भी उनके माता-पिता या रिश्तेदार कर लेते हैं। माता-पिता तो इतने मेहनती होते हैं कि बच्चे के पैदा होने के पहले ही यह सोचना प्रारंभ कर देते हैं कि उनका बच्चा क्या बनेगा। अब कुछ नालायक संतानें इस मेहनत पर जल्द ही पानी फेर देती है और कुछ थोड़े समय के बाद। कभी-कभी भगवान या किस्मत भी ये पानी फेरने का काम कर लेते हैं। पर कोई सपने देखना तो बंद नहीं कर देता है ना। क्यों करॆगा भाई हमारे माननीय मंत्रियों ने इसका इतना अभ्यास जो करवाया है, हर बार चुनाव में नये सपने दिखाते हैं और जीतने के बाद पानी फेर देते हैं उन सपनों पर। तो क्या हम मंत्रियों को चुनना बंद कर देते हैं क्या? नहीं ना।

मेरे माता-पिता ने भी कुछ सपने जरुर देखें होंगें पर मैं भी नालायकों की जमात का ही निकला। पर अच्छा है डाक्टर या इंजीनियर नहीं बना। क्योंकि मेरी तो इच्छा है कि मैं बाबा बन जाऊं। इसके लिये समय-समय पर भगवान को रिश्वत भी देता रहता हूँ। आप सोच रहें होंगें बाबा ही क्यों? जब बनने के लिये बहुत कुछ है तो बाबा क्यों? चलिये आप को बता देता हूँ कि मैं बाबा ही क्यों बनना चाहता हूँ?

बंधुवर वर्तमान समय में बाबागिरी से अच्छा कोई व्यवसाय नहीं है। इसके कई फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि इसमें आपको कोई विनियोग नहीं करना है, मतलब यह व्यवसाय बिना पैसों के शुरू किया जा सकता है। जब आप पर पैसे लगाने वाले इतने धार्मिक लोग है हमारे देश में तो फिर उनकी भावनाओं को ठेस लगा कर आप अपने पैसे खर्च क्यों करें? दुसरा फायदा यह है कि नेतागिरी की तरह बाबागिरी में भी आपका पढ़ा-लिखा होना अनिवार्य नहीं है। हाँ अगर आप पढ़ना-लिखना जानते हैं तो उसका अतिरिक्त फायदा भी आपको मिलेगा। भाई एक तो इससे आप विदेशी शिष्यों से जुड़ सकते है और दुसरा आप टेलीविज़न की शोभा बडा सकते हैं। वैसे भी इन चैनल वालो के पास कुछ दिखाने जैसा तो है नहीं तो आप अपने आप को दिखाइये ना।

इसका तीसरा फायदा यह है कि इसमें आय बहुत ज्यादा है, इतनी कि आप सोच भी नहीं सकते। जब करोड़ो धर्मप्रेमी जनता अपनी मेहनत की कमाई आप पर न्यौछावर कर रही हो तो आप ही अनुमान लगा सकते हैं। और सबसे बड़ी बात कि आप को कोई मेहनत भी नहीं करना है, बस या तो कुछ अच्छा-अच्छा बोलना है या फिर थोड़ा योग या ध्यान सीखाना है। घबराने की जरुरत नहीं है दोनों ही चीजों के लिये बाजार में बहुत सी पुस्तकें उपलब्ध है। अब एक पुस्तक पढ़्ने जितनी मेहनत तो की ही जा सकती है ना? आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आपके पास बड़े-बड़े आश्रम आ जायेगें, आपके आवागमन के लिये नये-नये वाहन उपलब्ध हो जायेंगें, अथाह पैसा आपके नाम से बैंकों मे जमा हो जायेगा। यहाँ तक की आपको कहीं आने-जाने के लिये भी ढेर सारा पैसा मिलेगा।

चौथा फायदा है भगवान। जी हां भगवान। आप उचित-अनुचित जो भी करें उसकी जिम्मेदारी लेने में भगवान को कोई हर्ज नहीं होगा। आपके आश्रम में भगदड़ में कुछ लोग मर भी जाये तो आप कह सकते है भगवान की यही मर्जी थी। और यकीन मानिये भगवान कुछ नहीं कहेगा, वो चुपचाप सब स्वीकार कर लेगा। और आप अपराधबोध से बच जायेंगें। अब बताइये इतना बड़ा फायदा कहीं और मिलेगा क्या?

पाँचवा फायदा है सम्मान। एक बाबा लोग ही हैं जिनके आगे आम जनता के अलावा बड़े-बड़े नेता, अधिकारी, अभिनेता, पुलिस वाले, बिजनेस मेन सब अपना शीश नवाते हैं। कोई भी हो सब बाबाओं से डरते हैं, और डरे भी क्यों नहीं इनके समर्थकों की संख्या ही इतनी होती है। जब ये अपने बाबा के आश्रम के लिये सरकारी जमीनों पर कब्जा कर सकते हैं, लोगो को डरा-धमका कर उनकी ज़मीने छीन सकते हैं, तो आप ही सोचिये क्या नहीं कर सकते हैं?

इसके अलावा और भी कई फायदे हैं जो की आपने कुछ समय पहले समाचार पत्रों में पढ़े होंगें या इंटरनेट पर वीडियो में देखें होंगें। कुछ लोगो ने तो पुरी लीला देखने के लिये वीडियो सीडी भी प्राप्त कर ली होगी। अब किसी को कृष्ण लीला मे रूचि हो या नहीं हो पर बाबा लीला में तो है।

तो आप ही बताईये कि अगर मैं बाबा बनना चाहता हूँ तो इसमें गलत क्या है? भाई मुझे तो इतने फायदे और किसी व्यवसाय या नौकरी में नज़र नहीं आते। अगर आपको आते हों तो मुझे जरूर बताना। तब तक मैं भगवान को मनाता हूँ कि वो मुझे बाबा बना दे और किसी अच्छे से बाबा को खोजकर उनसे कुछ गुर सीख लेता हूँ।


16 प्रतिक्रियाएँ to “काश मैं भी बाबा होता”


  1. मार्च 11, 2010 को 3:32 अपराह्न

    नेकी और पूछ पूछ ,बस आज ही शुरू हो जाइए , बिना किसी निवेश के शुरू हो जाइए,एक बार दूकान चल निकली तो २० उंगलिया घी में (पैर की भी गिन ली ) और सर कढाई में

  2. मार्च 11, 2010 को 5:08 अपराह्न

    धन्यवाद सोनलजी आपकी शुभकामनाओं के लिये। मैं तो पूरा ही कढाई में उतर जाऊँगा।

  3. मार्च 11, 2010 को 8:07 अपराह्न

    बहुत-बहुत अच्छा,very-2 nice.me bhi ye banana pasand karunga soni ji.again conrates and keep it up.

  4. मार्च 11, 2010 को 10:11 अपराह्न

    ha ha ha!! bade hi uchcha vichaar hain aapke.. ishwar aapki manokaamana jald hi poori kare..poori kyon, rasmalaai kare..

  5. मार्च 13, 2010 को 9:26 पूर्वाह्न

    जै हो बाबा जी। चेली हमे बना लेना । फिर चाँदी ही चाँदी। हा हा हा

  6. मार्च 13, 2010 को 9:34 पूर्वाह्न

    प्रयासरत रहिए सफलता जरुर मिलेंगी ।

  7. मार्च 13, 2010 को 9:57 पूर्वाह्न

    बाबाओ के पोस्ट रिक्त हो रहे है. आवेदन कर दीजिये

  8. मार्च 13, 2010 को 10:01 पूर्वाह्न

    रिक्त हो रहे हैं बाबाओ के पद. आवेदन करने की देर है

  9. मार्च 13, 2010 को 9:51 अपराह्न

    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती….

    बाबा जी के प्रवचन के लिए स्क्रिप्ट लिखने के लिए बंदे को याद रखियेगा. शुरु में सस्ते में लिख देंगे. साल भर के ठेके का भाव अलग है.

    शुभकामनाएँ.

  10. मार्च 14, 2010 को 1:58 अपराह्न

    बच्चा अगर बाबागिरी के धन्धे में पाँव जमाना चाहते हो तो जल्दी से हमारी शरण में आ जाओ….खूब जम कर ऎश करोगे।
    अलख निरन्जन!!!


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