पिछले रविवार मैंने और मेरे एक मित्र ने मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क जाने का कार्यक्रम बनाया। चूँकि हम दोनों बाहर से हैं, और छोटे शहरों से हैं, इसलिये बड़ी उम्मीद थी कि काफ़ी तरह के पशु-पक्षी देखने को मिलेंगे। इनकों चिड़ियाघरों की तरह पिंजरों मे कैद देखने की बजाय खुले में देखना ज्यादा सुकुन देता है। खैर अपनी योजनानुसार हम नेशनल पार्क पहुँच गये। वातावरण में गर्मीं भी थी और धूप भी तेज थी। पर शायद घुमने की इच्छा उससे भी ज्यादा थी।
प्रवेश टिकट खरीद कर अंदर गये और क़रीब १ किलोमीटर चल कर वहाँ पहुँचे जहाँ लायन-टायगर सफारी का टिकट मिल रहा था। बस ने हमें ३० मिनट तक पार्क मे घुमाया पर सिर्फ २ टायगर और १ लायन ही हमें देखने के लिये मिला। हमने सोचा चलो कोई बात नहीं दुसरे पशु-पक्षी तो मिलेंगें। तो हम पार्क में काफी देर तक यहाँ से वहाँ घुमते रहें। हमारे साथ और भी कई लोग थे जो हमारी ही तरह कुछ उम्मीद लेकर आये थे। पर कुछ हिरनों को देखने के बाद पता चला की अब और कुछ भी नहीं है, जो भी था हम देख चुके हैं। ऎसा लगा पेड़ से गिरे पत्तों की तरह हम लोगो की उम्मीदें भी सड़क पर धूप में तिलमिला रही है। पर हिम्मत ना हारते हुए अपने एक स्थानीय मित्र को फोन किया, पर उसने भी इस बात की पुष्टि कर दी की वहाँ और ज्यादा कुछ नहीं है। हम लोग तो निराश हो गये पर ज्यादातर वहाँ प्रेमी युगल थे जिन्हें इससे कोई मतलब नहीं था। वो लोग या तो किसी कोने में अपनी चोंच लड़ाने में मस्त थे या फिर कोना ढ़ूढ़्ने में व्यस्त थे।
खैर पार्क से निराश होकर सोचा चलो कान्हेरी गुफ़ा ही देख लें। कान्हेरी गुफा नेशनल पार्क से ७ किमी दूर है तथा वहाँ जाने के लिये बस पार्क के अंदर ही उपलब्ध है। वहाँ जाकर थोड़ी संतुष्टि मिली। प्राचीन काल की लगभग १०० बौद्ध गुफाओं को देखकर अच्छा लगा। कुछ गुफाओं में बुद्ध की प्रतिमाऎं थी तो कुछ ऎसी लग रही थी मानों किसी ने अपने रहने के लिये कमरे बनायें होंगे। कहा जाता है कि ये गुफाऎं बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित हैं। इन गुफाओं के आसपास आपको काफी बंदर भी मिल जायेंगें जो कि आपके हाथों से खाने-पीने की सामग्री छीनने में भी नहीं हिचकते। तो यह थी हमारी नेशनल पार्क की यात्रा।
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